"पिछड़े क्षेत्रों में महिला शिक्षा की चुनौतियाँ: एक संरचनात्मक, सामाजिक एवं नीतिगत विश्लेषण : लेखक अवनीषा वर्मा

UP समाचार न्यूज/हिंदी लेख / लेखिका अवनीषा वर्मा 

गुरुवार 11 दिसम्बर 2025

11:55 PM  /यूपी समाचार डेस्क : 

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भारत में महिला शिक्षा सामाजिक प्रगति, आर्थिक विकास और लोकतांत्रिक समता के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक मानी जाती है। किंतु जब इस विषय का अध्ययन पिछड़े, ग्रामीण तथा वंचित समुदायों के संदर्भ में किया जाता है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा की उपलब्धता और उसकी वास्तविक प्राप्ति के बीच एक गंभीर अंतर मौजूद है। लड़कियों की शिक्षा यहाँ केवल विद्यालय जाने का प्रश्न नहीं, बल्कि सामाजिक संरचनाओं, आर्थिक सीमाओं, सांस्कृतिक अपेक्षाओं और संस्थागत अव्यवस्थाओं से जूझती एक लंबी एवं जटिल प्रक्रिया है।


सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना और लैंगिक पूर्वाग्रह

पिछड़े क्षेत्रों की सामाजिक-सांस्कृतिक बनावट पितृसत्तात्मक मान्यताओं से गहराई से प्रभावित है। लड़कियों की भूमिका को प्रायः घरेलू दायित्वों, विवाह और पारिवारिक मर्यादाओं तक सीमित मान लिया जाता है। परिणामस्वरूप—

• लड़कियों की शिक्षा को द्वितीयक या ‘वैकल्पिक’ समझा जाता है

• प्रारंभिक विवाह शिक्षा की निरंतरता को बाधित करता है

• घरेलू कार्यों का बोझ विद्यालयी अनुशासन में बाधा डालता है

• सामाजिक ‘आचरण’ और ‘सुरक्षा’ के तर्क शिक्षा को नियंत्रित करते हैं

• इन परिस्थितियों में शिक्षा लड़कियों के लिए अधिकार से अधिक संघर्ष बन जाती है।


 आर्थिक असमानता: संसाधनों की कमी और प्राथमिकताओं का अंतर

आर्थिक दृष्टि से कमजोर परिवारों के लिए शिक्षा एक अतिरिक्त व्यय प्रतीत होती है। सीमित आय के बीच किताबें, वर्दी, परिवहन और अन्य आवश्यक खर्चों को वहन करना कठिन होता है। ऐसी दशा में—

• परिवार आर्थिक निवेश को ‘लड़कों पर प्राथमिकता’ के रूप में देखते हैं

• लड़कियों की शिक्षा को “कम प्रतिफल” वाला विकल्प समझा जाता है

• गरीबी और सामाजिक धारणाएँ मिलकर अनेक लड़कियों को विद्यालय से दूर कर देती हैं

• आर्थिक चुनौतियाँ केवल गरीबी का परिणाम नहीं, बल्कि गहरे लैंगिक पूर्वाग्रहों की अभिव्यक्ति भी हैं।


अवसंरचनागत कमी: सुरक्षा, सुविधा और संस्थागत समर्थन का अभाव

ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों में विद्यालयों की अवसंरचना आज भी गंभीर रूप से कमजोर है। विशेषकर—

स्वच्छ एवं पृथक शौचालयों की कमी,विद्यालय तक सुरक्षित आवागमन का अभाव,महिला शिक्षिकाओं की न्यूनता कक्षाओं, पुस्तकालयों और सीखने के संसाधनों की अपर्याप्तता,किशोरावस्था की लड़कियों के लिए ये कमियाँ शिक्षा को असुरक्षित और अनुपयुक्त बनाती हैं, जिससे विद्यालय त्याग की दर बढ़ जाती है।

डिजिटल विभाजन: अवसरों की खाई

भारत का शिक्षा तंत्र तेजी से डिजिटल हो रहा है, परंतु पिछड़े क्षेत्रों की बालिकाएँ—

स्मार्टफोन,इंटरनेट,ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म,डिजिटल साक्षरता  से लगभग पूरी तरह वंचित हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान यह डिजिटल असमानता भयावह रूप में सामने आई, जब लाखों बालिकाएँ शिक्षा के दायरे से बाहर हो गईं। डिजिटल संसाधनों की कमी अब केवल तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि ‘अवसरों की असमानता’ का सूचक बन चुकी है।


बाधाओं के बीच जिजीविषा: लड़कियों की अदम्य आकांक्षा

इन चुनौतियों के बावजूद, यह उल्लेखनीय है कि ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों की बालिकाएँ कठिन परिस्थितियों के बीच भी शिक्षा के प्रति दृढ़ संकल्प रखती हैं। यह आकांक्षा बताती है कि—

• उनके लिए शिक्षा आत्मसम्मान का स्रोत है

• शिक्षा भविष्य निर्माण का माध्यम है

• वे सामाजिक अवरोधों को चुनौती देने का साहस रखती हैं

• यह जिजीविषा महिला शिक्षा की सबसे बड़ी ताकत है।


समग्र समाधान की आवश्यकता: नीतियाँ, समाज और समुदाय की साझा जिम्मेदारी


पिछड़े क्षेत्रों में महिला शिक्षा केवल एक शैक्षिक विषय नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और विकास के परिप्रेक्ष्य से अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न है। अतः समग्र समाधान हेतु आवश्यक है—

• सामुदायिक स्तर पर लैंगिक संवेदनशीलता अभियान

• ग्रामीण विद्यालयों में अवसंरचना का विस्तार

• आर्थिक सहयोग योजनाओं (छात्रवृत्ति, निःशुल्क सामग्री, परिवहन सुविधा) का सुदृढ़करण

• महिला शिक्षिकाओं की संख्या में वृद्धि

• डिजिटल संसाधनों तक सार्वभौमिक पहुँच

• पंचायत, स्थानीय निकायों एवं नागरिक संगठनों की सक्रिय भागीदारी

• समाज और शासन के संयुक्त प्रयासों के बिना कोई स्थायी परिवर्तन संभव नहीं।


निष्कर्ष : राष्ट्र की प्रगति का दायित्व 


महिला शिक्षा का सशक्तिकरण व्यक्तिगत उन्नति तक सीमित नहीं, बल्कि संपूर्ण राष्ट्र के नैतिक, आर्थिक और बौद्धिक विकास की दिशा निर्धारित करता है। इसलिए पिछड़े क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता देना कोई वैकल्पिक विकल्प नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्रगति का अनिवार्य दायित्व है।


एक शिक्षित बालिका केवल एक शिक्षित व्यक्ति नहीं—बल्कि एक सशक्त परिवार, जागरूक समुदाय और प्रगतिशील राष्ट्र की आधारशिला होती है।

"आइये एक नज़र प्रकाश डालिये शिक्षिका,लेखक अवनीषा के ऊपर

महिलाओ के प्रति सदभावना उनके हक के प्रति अपनी सकारात्मक सोंच रखने वाली एवं यह लेख लिखने वाली भी एक महिला हैं जिनका नाम अवनीषा वर्मा है, उनकी शिक्षा अंग्रेजी में एम. ए. है जो उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से वर्ष 2020 में पूर्ण की, फिलहाल अभी भी अवनीषा अपनी उच्च शिक्षा में वर्ष 2021 से पीएचडी कर रहीं हैं पी. एच.डी भी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय जैसे नाम चीन संस्थान से कर रहीं हैं। वर्तमान में अवनीषा उत्तर प्रदेश के जनपद बदायूं में अंग्रेजी विषय की शिक्षिका के रूप में गत 3 वर्षों से गिंदो देवी महाविद्यालय शहर व जनपद बदायूं में कार्यरत हैं। वे मूलतः बनारस की रहने वाली हैं।


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