UP समाचार न्यूज/ रिपोर्ट आकाश सक्सेना /खबर आगरा यूपी
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| आगरा पनवारी कांड के बाद मोके पर पुलिस बल की उपस्थिति के समय का चित्र.... |
सार...
समाचार /संवादाता आकाश सक्सेना ✍️✍️
वर्ष 1990 में हुए जातीय संघर्ष के जख्मों पर आखिरकार न्याय का मोमबत्ती जली है। जिले के सिकंदरा के पनवारी गाँव में 22 जून 1990 को जाट और जाटव समुदाय के बीच विवाद ने हिंसक रुप ले लिया था। इस संघर्ष में पुलिस और पीएसी की मौजूदगी में बरात चढ़ाने को लेकर हुआ विवाद बड़े पैमाने पर हिंसा में बदल गया था, जिसमें गोलीबारी हुई और एक युवक की मौत हो गई थी। इस हिंसा में कुल 150 से अधिक लोग घायल हुए थे और कई घर जले थे। तब से इस मामले में लंबी कानूनी प्रक्रिया चल रही थी।
विस्तृत विवरण :
यह मामला 22 जून 1990 का है, जब सिकंदरा के पनवारी गाँव में अनुसूचित जाति के युवक की बारात लेकर जाने को लेकर जाट और जाटव समुदाय के बीच विवाद हुआ। उस समय पुलिस की मौजूदगी में ही विवाद ने हिंसक रूप धारण कर लिया। पुलिस और पीएसी ने बल प्रयोग किया, जिसमें गोली चलने से सोनी राम जाट नामक युवक की मृत्यु हो गई।
इसके बाद पूरे क्षेत्र में हिंसा भड़क उठी। 24 जून को दोपहर को अकोला में दोनों समुदायों के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें एक महिला की मौत हुई और करीब 150 लोग घायल हो गए। इस हिंसा में 200 से अधिक लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया, जिसमें 72 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।
वर्ष 1990 से लेकर अब तक इस मुकदमे की सुनवाई चलती रही। लंबे समय तक न्यायालय में चलने वाले इस केस में 34 साल बाद, बुधवार को कोर्ट ने 35 आरोपियों को दोषी ठहराया है। इनमें से 32 को जेल भेजा गया है, जबकि तीन आरोपी जो कोर्ट में हाजिर नहीं हो सके उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए गए हैं। 15 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया है।
अधिकारियों ने बताया कि शुक्रवार सुबह 8:30 बजे आरोपियों को जेल से कोर्ट में लाया जाएगा। कोर्ट में सभी आरोपियों को एक-एक कर पेश किया जाएगा और वे अपने पक्ष रखेंगे। इसके बाद कोर्ट सजा सुनाएगा।
इस फैसले से इस हिंसा के 34 वर्षों बाद न्याय की उम्मीद फिर जगी है। इस केस का फैसला न केवल पीड़ितों के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण घटना है, जो जातीय सद्भाव और कानून के शासन की मजबूती का प्रतीक है।
